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जाड़े में क्या मजा

जाड़े में क्या मज़ा हो वो तो सिमट रहे हों 

और खोल कर रज़ाई हम भी लिपट रहे हों 


अब आप की दमों में हम आ चुके हटो भी 

ख़ुश आवे प्यारे किस को जब दिल ही कट रहे हों 


क्यूँकर ज़बाँ से उन की अपना बचाव होवे 

ज़ात-ओ-सिफ़ात सब के जब वो उकट रहे हों 


आते थे साथ मेरे देखो तो क्या हुए वो 

ऐसा न हो कि पीछे रिश्ते में कट रहे हों 


तब सैर देखे कोई बाहम लड़ाईयों के 

खींचे हों वो तो तेग़ा और हम भी डट रहे हों 


क्या कर सकें दिवाने हाल-ए-दिल-ए-परेशाँ 

ज़ुल्फ़ों के बाल उन के जब आप लट रहे हों 


आपस में रूठने का अंदाज़ हो तो ये हो 

वो हम से फट रहे हों हम उन से फट रहे हों 


जी चाहता है ऐ दिल इक ऐसी रात आवे 

मतला हो साफ़ शहरा बादल भी फट रहे हों 


सोते हों चाँदनी में वो मुँह लपेटे और हम 

शबनम का वो दुपट्टा पट्ठे उलट रहे हों 


पंजम ग़ज़ल अब 'इंशा' अंदाज़ की सुना दी 

आग़ोश में मआ'नी जिस के लिपट रहे हों 

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